TERE MERE SAPNE - HINDI MOVIE REVIEW / DEV ANAND, VIJAY ANAND, MUMTAZ & HEMA MALINI MOVIE

 

 


 

यह फिल्म मशहूर अभिनेता और निर्माता देव आनंद ने बनाई थी। फिल्म का निर्देशन उनके भाई विजय आनंद ने किया था और यह फिल्म नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले बनी थी। इसमें देव आनंद के साथ-साथ मुमताज़, हेमा मालिनी और विजय आनंद ने अहम किरदार निभाए। फिल्म का संगीत उस दौर के महान संगीतकार एस. डी. बर्मन ने दिया, जिसने इसे और भी यादगार बना दिया।

इस फिल्म की खास बात यह है कि यह मशहूर अंग्रेजी उपन्यासकार . जे. क्रोनिन के लोकप्रिय उपन्यास सिटाडेल पर आधारित है। यही वजह है कि कहानी में गहराई और यथार्थ का स्वाद देखने को मिलता है।

 

फिल्म की कहानी एक आदर्शवादी और महत्वाकांक्षी डॉक्टर आनंद कुमार (देव आनंद) से शुरू होती है। आनंद एक छोटे से गांव में डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहता है। उसका सपना है कि वह गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करे और लोगों को अच्छा स्वास्थ्य दे। वह बहुत मेहनती, ईमानदार और नेकदिल इंसान है।

एक दिन गांव में इलाज करते हुए उसकी मुलाकात होती है रेखा (मुमताज़) से। रेखा एक भोली-भाली, मासूम और दिल की साफ लड़की है। धीरे-धीरे आनंद और रेखा एक-दूसरे के करीब आते हैं और प्यार में पड़ जाते हैं। उनका रिश्ता बहुत सच्चा और प्यारा होता है।

गांव में रहते हुए आनंद लोगों की सेवा तो करता है, लेकिन वहां उसके काम की कोई बड़ी पहचान नहीं बन पाती। वह सोचता है कि अगर शहर जाकर बड़ा डॉक्टर बनेगा, तो नाम और पैसा दोनों मिलेगा। यही सोच उसे शहर की ओर खींच ले जाती है।

शहर पहुंचकर उसकी मुलाकात होती है किर्दार (विजय आनंद) से, जो एक चतुर और दुनियादार व्यक्ति है। किरदार आनंद को समझाता है कि शहर में नाम कमाने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं, बल्कि पब्लिसिटी, दिखावा और लोगों को प्रभावित करने की कला भी जरूरी है।

धीरे-धीरे आनंद का जीवन बदलने लगता है। जहां पहले वह लोगों की सेवा को ही अपना मकसद मानता था, अब वह नाम, शोहरत और पैसा कमाने की दौड़ में शामिल हो जाता है।

इस बीच, रेखा हमेशा आनंद का साथ देती है। वह चाहती है कि आनंद पहले जैसा सच्चा और नेकदिल इंसान बना रहे। लेकिन आनंद अब पहले जैसा नहीं रहा। वह हाई क्लास सोसाइटी में घुल-मिल जाता है और रेखा से दूर होता जाता है।

इसी बीच कहानी में आती है एक और किरदारअनुराधा (हेमा मालिनी) अनुराधा एक अमीर और स्टाइलिश महिला है। वह आनंद से प्रभावित हो जाती है और उसके करीब आना चाहती है। अब आनंद एक ऐसे मोड़ पर खड़ा होता है जहां उसे अपने सिद्धांतों, अपने प्यार और अपने करियर के बीच चुनाव करना होता है।

शोहरत की ऊँचाइयों पर पहुंचकर आनंद को एहसास होता है कि उसने जो रास्ता चुना है, वह सही नहीं है। उसके पुराने दोस्त, उसका सच्चा प्यार और उसके आदर्श उससे छिनते जा रहे हैं।

रेखा का दर्द और उसकी सच्चाई आनंद की आंखें खोल देती है। उसे समझ आता है कि असली खुशी पैसे और शोहरत में नहीं, बल्कि सच्चे रिश्तों और अपने कर्तव्य को निभाने में है।

आनंद आखिरकार अपने जीवन की असली दिशा को पहचानता है और फिर से वही ईमानदार और नेकदिल डॉक्टर बनने का फैसला करता है, जो लोगों की सेवा करता है। रेखा उसका साथ देती है और दोनों मिलकर फिर से एक नई शुरुआत करते हैं।

1.   कहानी की गहराईफिल्म केवल एक लव स्टोरी नहीं है, बल्कि इसमें आदर्श और भौतिकवाद की जंग दिखाई गई है।

2.   देव आनंद का अभिनयदेव आनंद ने डॉक्टर आनंद के रोल में अपने मासूमियत, आकर्षण और भावनाओं से जान डाल दी।

3.   मुमताज़ की प्यारी अदाकारीरेखा के किरदार में मुमताज़ ने अपनी मासूमियत और चुलबुलेपन से दर्शकों का दिल जीत लिया।

4.   हेमा मालिनी की मौजूदगीउन्होंने फिल्म में ग्लैमर और सशक्त किरदार दोनों का संतुलन बखूबी दिखाया।

5.   संगीतएस. डी. बर्मन का संगीत, जिसमेंये दिल ना होता बेचाराऔरजिंदगी जिंदगीजैसे गाने हैं, आज भी लोगों को याद हैं।

6.   निर्देशनविजय आनंद का निर्देशन बेहद शानदार था, जिसने कहानी को यथार्थवादी और रोचक बनाया।

 

 “तेरे मेरे सपनेसिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि समाज और इंसानी मूल्यों पर गहरा संदेश देने वाली क्लासिक फिल्म है। यह हमें सिखाती है कि पैसा और शोहरत से बड़ी चीज़ इंसानियत और सच्चा प्यार होता है।



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