GANWAAR - HINDI MOMANTIC MUSICAL MOVIE REVIEW / RAJENDRA KUMAR / VYJAYANTHIMALA / PRAN MOVIE
"जब अन्याय अपनी हदें पार करता है...
तो एक ‘गंवार’ उठता है – बदलाव लाने के लिए।
ये है कहानी एक जागीरदार के बेटे की...
जिसने आम किसान बनकर अपना असली फ़र्ज़ निभाया।
फिल्म है – गंवार, जिसमें हैं राजेन्द्र कुमार और वैजयंतीमाला।
तो आइए, सुनते हैं ये प्रेरणादायक और भावनात्मक कहानी..."
राजा साहब, एक नेकदिल और धार्मिक इंसान हैं। उनकी पत्नी के निधन के बाद, वे अपने इकलौते बेटे गोपाल को पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज देते हैं और खुद दूसरी शादी कर लेते हैं।
लेकिन नई पत्नी घर के मामलों में ज्यादा दखल नहीं देती — और अपने भाई विजय बहादुर को ज़मीन-जायदाद की पूरी जिम्मेदारी सौंप देती है।
अब गांव की पूरी व्यवस्था विजय बहादुर के हाथ में आ जाती है — जो एक निर्दयी और लालची इंसान है। गरीब किसानों को वह तंग करता है, ज़बरदस्ती वसूली करता है और उन्हें डर के साए में जीने पर मजबूर करता है।
इसी बीच गांव में एक शिक्षित और बहादुर लड़की पारो आती है। जब वह किसानों की हालत देखती है, तो चुप नहीं बैठती। वह फैसला करती है कि अब अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
पारो कुछ किसानों को साथ लेकर सीधे शहर जाती है — राजा साहब से मिलने और उन्हें असली हालात बताने।
उधर, गोपाल, इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी करके लौट चुका होता है। वह खेती में नई तकनीकों और विचारों को लागू करना चाहता है। उसका सपना है कि उसके पिता की जागीर एक मिसाल बने — जहां किसान और ज़मींदार दोनों मिलकर सुख-शांति से रहें।
जब पारो और किसान राजा साहब से मिलने आते हैं, गोपाल को गांव की असली स्थिति का पता चलता है। वो बहुत दुखी होता है और विजय बहादुर के खिलाफ खड़ा होने की कोशिश करता है।
लेकिन उसकी सौतेली माँ उसे रोकती है, और गोपाल की बातों को महत्व नहीं देती।
तब गोपाल एक बड़ा निर्णय लेता है — वह अपना घर छोड़ देता है और "गरीबदास" नाम से एक किसान के रूप में गांव लौट आता है।
वह खेतों में मेहनत करता है, किसानों के साथ रहता है और उनकी समस्याएं समझता है।
धीरे-धीरे गांव में लोग गरीबदास को पसंद करने लगते हैं, और उसकी मदद से खेती में सुधार होने लगता है।
जब विजय बहादुर को इस बदलाव का पता चलता है, तो वह आगबबूला हो जाता है।
वह गांव की पकी हुई फसल में आग लगवा देता है।
पूरा गांव फिर से भूखा रह जाता है।
अब गोपाल यानी गरीबदास तय करता है कि अब चुप नहीं बैठ सकता।
वह विजय बहादुर की सच्चाई उजागर करने का फैसला करता है।
लेकिन... विजय बहादुर एक और चाल चलता है —
वह गरीबदास पर गोपाल की हत्या का आरोप लगाता है और उसे गिरफ्तार करवा देता है।
गरीबदास को अदालत में पेश किया जाता है, और केस चलता है कि उसने गोपाल को मार दिया है।
मगर तभी कहानी में आता है जबरदस्त मोड़...
कोर्ट में खुलासा होता है कि गरीबदास और गोपाल, दोनों एक ही व्यक्ति हैं!
सभी लोग चौंक जाते हैं।
विजय बहादुर की सच्चाई भी सामने आ जाती है — कैसे उसने किसानों का शोषण किया, फसल जलाई और अपने ही भांजे को मरवाने की साजिश की।
फिल्म का अंत होता है विजय बहादुर की हार और किसानों की जीत के साथ।
गोपाल को न सिर्फ बाइज्जत बरी कर दिया जाता है, बल्कि उसे और पारो को गांव का नया मार्गदर्शक भी माना जाता है।
गांव में फिर से हरियाली लौट आती है, और ‘गंवार’ कहलाने वाला गोपाल बन जाता है असली हीरो।
"ये थी कहानी गंवार की — एक ऐसे हीरो की जो किसानों के लिए जीता है।
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