SITAARE ZAMEEN PAR - AAMIR KHAN HINDI MOVIE REVIEW / HINDI SPORTS COMEDY DRAMA FILM
"जब ज़िंदगी हर किसी को एक मौका देती है,
तो कुछ सितारे… ज़मीन पर भी चमकते हैं।
फिल्म है — Sitaare Zameen Par.
एक इमोशनल, मज़ेदार और प्रेरणादायक कहानी —
जो दिल को छूती है और ज़िंदगी को देखने का नजरिया बदल देती है।
Kabir Sawant एक तेज-तर्रार, मगर घमंडी बास्केटबॉल कोच हैं। उन्हें खुद पर, अपनी समझ पर और अपने तरीकों पर बहुत भरोसा है। लेकिन ये भरोसा धीरे-धीरे अहंकार बन चुका है।
एक बड़े मैच के दौरान उनकी एक गलती, और फिर गुस्से में आकर एक अधिकारी से उलझ जाना... उन्हें भारी पड़ता है। कोर्ट से उन्हें सज़ा मिलती है — 90 दिन की कम्युनिटी सर्विस।
अब, एक बड़े क्लब का कोच बनने की चाहत रखने वाला इंसान, मजबूर हो जाता है एक ऐसे काम के लिए — जिसे वो अपने करियर की सबसे बड़ी बेइज़्ज़ती समझता है।
कोर्ट के आदेश पर कबीर को भेजा जाता है एक विशेष टीम की कोचिंग देने, जिसमें खिलाड़ी हैं... ऐसे युवा जो शारीरिक या मानसिक तौर पर विशेष हैं।
ये हैं – कोई बोल नहीं सकता, कोई चलने में लड़खड़ाता है, कोई डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है, तो कोई ऑटिज्म से।
शुरुआत में कबीर इस टीम को गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें लगता है कि ये खिलाड़ी सिर्फ टाइमपास हैं। वो चिढ़ते हैं, गुस्सा होते हैं, और बार-बार कोशिश करते हैं कि किसी तरह इस काम से छुटकारा मिले।
लेकिन धीरे-धीरे, इन "सीमित क्षमताओं" वाले बच्चों में, उन्हें अपार संभावनाएं दिखने लगती हैं। इन खिलाड़ियों में जो जुनून है, जो सच्चाई है, जो दिल से खेलने का जज़्बा है — वह कबीर के दिल को छूने लगता है।
Genelia Deshmukh, फिल्म में एक NGO वर्कर बनी हैं, जो कबीर को बार-बार समझाती हैं कि जिंदगी सिर्फ जीतने का नाम नहीं है — बल्कि कोशिश करने, साथ निभाने और सच्चे दिल से खेलने का नाम है।
धीरे-धीरे, कबीर इस टीम को दिल से कोच करना शुरू करते हैं।
अब कहानी बदलती है... वो टीम जिसे कोई नहीं जानता था, अब छोटे-छोटे मैच जीतने लगती है।
उनके पास रणनीति है, मेहनत है, और सबसे बड़ी बात — आत्मविश्वास है।
कबीर भी बदलते हैं — वो घमंडी कोच, अब एक mentor, दोस्त और गाइड बन चुका है।
अब वो सिर्फ सिखा नहीं रहा... बल्कि खुद भी सीख रहा है।
जब टीम को एक बड़े टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिलता है,
तो सबकी नज़रें उन पर होती हैं।
हर खिलाड़ी अपने तरीके से बेस्ट देता है —
कोई गिरता है,
कोई चूकता है,
लेकिन कोई हार नहीं मानता।
मैच चाहे जो भी हो, जीत उनकी होती है —
क्योंकि उन्होंने खुद को और दूसरों को साबित कर दिया कि
"वो सितारे हैं — जो ज़मीन पर भी चमक सकते हैं।"
फिल्म का अंत बहुत भावुक होता है।
कोर्ट में कबीर की सज़ा पूरी हो जाती है, लेकिन अब वो इस टीम को छोड़ना नहीं चाहते।
टीम के खिलाड़ी भी कहते हैं,
"Coach Sir, अब आप हमारे हीरो हैं।"
और तब कबीर खुद समझते हैं कि असली जिंदगी क्या होती है —
शानदार करियर नहीं,
बल्कि किसी की जिंदगी में कुछ बदलाव लाना।
“Sitaare
Zameen Par” सिर्फ एक फिल्म नहीं है,
ये उन सबके लिए सलाम है —
जो अपने हालातों से लड़ते हैं,
जो ज़िंदगी को उसके पूरे रंगों में अपनाते हैं।
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जय हिंद!
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