KHANDAN - HINDI MOVIE REVIEW / SUNIL DUTT & NUTAN MOVIE

 



1965 में रिलीज़ हुई हिंदी फिल्म "Khandan" भारतीय सिनेमा की एक यादगार पारिवारिक फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म का निर्देशन किया था . भीमसिंह (A. Bhimsingh) ने, जो दक्षिण भारत की फिल्मों के मशहूर निर्देशक थे। फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में नजर आते हैंसुनील दत्त, नूतन, प्राण, ओम प्रकाश, ललिता पवार, हेलेन और मुमताज़।
फिल्म का संगीत दिया था रवि ने और इसके गाने उस समय काफी लोकप्रिय हुए थे।

यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई और साल 1965 की सातवीं सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। "Khandan" असल में . भीमसिंह की ही तमिल फिल्म "Bhaaga Pirivinai" का हिंदी रीमेक है। आइए अब जानते हैं इसकी पूरी कहानी।

कहानी की शुरुआत होती है परिवार के मुखिया रामस्वरूप लाल के निधन से। उनकी मृत्यु के बाद उनकी दो संतानेंजीवंदास और शंकर को बड़ी ज़मीन और खेती-बाड़ी विरासत में मिलती है।

जीवंदास की शादी भगवंती से होती है। यह दंपति सुखी तो है, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं होती। दूसरी ओर, शंकर की पत्नी पार्वती होती है और उनके दो बेटे हैंगोविंद और श्याम।

कहानी में एक मोड़ तब आता है जब छोटा बेटा गोविंद एक हादसे का शिकार हो जाता है। बिजली के झटके की वजह से उसका दाहिना हाथ हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो जाता है। यह घटना पूरे परिवार पर गहरी छाप छोड़ती है।

समय बीतता है और दोनों भाई बड़े होते हैं। श्याम पढ़ाई के लिए शहर चला जाता है। जब वह पढ़ाई पूरी करके लौटता है, तो देखता है कि परिवार में गहरे मतभेद और कड़वाहट पैदा हो चुकी है।

परिवार अब दो हिस्सों में बंट चुका होता है

·        एक तरफ हैं जीवंदास, भगवंती, श्याम, नवरंगी और नीलिमा

·        दूसरी तरफ हैं गोविंद, उसकी पत्नी राधा, शंकर और पार्वती।

इस बंटवारे से घर में तनाव बढ़ जाता है और आपसी रिश्तों की मिठास खत्म होने लगती है।

फिल्म में असली खलनायक है नवरंगी वह लालच और स्वार्थ में अंधा होकर परिवार के बीच नफरत की दीवार खड़ी करता है। नवरंगी अपनी चालों से गोविंद और श्याम को भी परेशान करता है।

गोविंद, जिसकी एक हाथ से विकलांगता है, अपनी मेहनत और पत्नी राधा के सहयोग से जिंदगी को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। उनके जीवन में खुशियां तब आती हैं जब उनके घर एक स्वस्थ बच्चे का जन्म होता हैजिसका नाम रखा जाता है नवजीवंदास लाल।

लेकिन नवरंगी की बुरी नीयत यहीं खत्म नहीं होती। वह हाथी खरीदता है और मेले में शो शुरू करने की योजना बनाता है। उसके शो का हिस्सा होता है बच्चों को हाथी की सूंड से फेंकना। अपनी लालच में वह गोविंद के मासूम बेटे नवजीवंदास को भी इस खेल का हिस्सा बनाने की साजिश करता है।

नवरंगी की करतूत से बच्चा अपहरण कर लिया जाता है और मेला स्थल पर उसे शो का हिस्सा बनाया जाता है। गोविंद और राधा किसी तरह वहां पहुंचकर अपने बेटे को बचाते हैं।

इसी दौरान नवरंगी, गोविंद पर हमला करता है। चमत्कारिक रूप से गोविंद का लकवाग्रस्त हाथ फिर से काम करने लगता है और वह नवरंगी से मुकाबला करता है। जब नवरंगी श्याम और गोविंद दोनों को मारने की कोशिश करता है, तब पूरा परिवार एकजुट होकर सच्चाई सामने लाता है।

सबको पता चलता है कि परिवार की टूटन और बंटवारे की असली वजह नवरंगी ही था। अंत में पुलिस नवरंगी को गिरफ्तार कर लेती है।

इसके बाद घर की दीवार, जो परिवार के बीच विभाजन का प्रतीक थी, गोविंद और श्याम मिलकर तोड़ते हैं। परिवार फिर से एक हो जाता है। फिल्म का अंत जीवंदास की प्रार्थना से होता है, जहां पूरा परिवार एक साथ खड़ा होकर एकजुटता और प्यार का संदेश देता है।

1.   पारिवारिक मूल्यों पर जोरफिल्म दिखाती है कि लालच और स्वार्थ कैसे एक बड़े परिवार को तोड़ सकते हैं, लेकिन सच्चा प्यार और एकता हर मुश्किल को हरा सकती है।

2.   भावनात्मक अपीलगोविंद की विकलांगता, मां-बाप का दर्द, और भाई-भाई के बीच का मतभेद दर्शकों को गहराई से छूता है।

3.   संगीतरवि के संगीत ने फिल्म की भावनाओं को और प्रभावशाली बना दिया। गाने आज भी सुने जाते हैं।

4.   कलाकारों का अभिनयसुनील दत्त और नूतन की जोड़ी ने बेहतरीन अभिनय किया। प्राण ने नवरंगी के रूप में खलनायकी का अलग ही रंग दिखाया।

"Khandan" सिर्फ एक पारिवारिक ड्रामा नहीं बल्कि एक सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म है। यह हमें सिखाती है कि परिवार की ताकत आपसी प्रेम और विश्वास में होती है। लालच और झगड़े अस्थायी हैं, लेकिन परिवार का साथ हमेशा अमूल्य होता है।

यही कारण है कि "Khandan" 1965 की सबसे सफल फिल्मों में गिनी जाती है और आज भी इसे देखने पर वही पुराना अपनापन और भावनाओं का जुड़ाव महसूस होता है।





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