फ़िल्म
Ayaash का
निर्देशन और
निर्माण शक्ति
सामंता
ने
किया
था।
इसमें
संजीव
कुमार
और
रति
अग्निहोत्री मुख्य
भूमिकाओं में
हैं।
यह
बिमल
मित्रा
के
उपन्यास पर
आधारित
है
और
1972 की
बांग्ला फ़िल्म
Stree का
रीमेक
है।
संगीत
रविन्द्र जैन
ने
दिया
है
और
गीत
आनंद
बक्शी
ने
लिखे
हैं।
कहानी
हमें
ले
जाती
है
1930 के
दशक
में,
जब
भारत
अंग्रेज़ों के
अधीन
था
और
पूरे
देश
में
‘ब्रिटिश भारत
छोड़ो’
आंदोलन
की
लहर
थी।
उस
समय,
देश
के
लोग
आज़ादी
की
लड़ाई
में
जुटे
थे,
लेकिन
ठाकुर
जसवंत
सिंह
की
ज़िंदगी बिल्कुल अलग
थी।
जसवंत
सिंह
एक
अमीर
और
ऐय्याश
ज़मींदार था।
उसका
दिन
या
तो
सुबह
देर
से
शुरू
होता
था,
या
फिर
शाम
ढलने
पर।
उसकी
ज़िंदगी में
बस
शौक़-शराबत, दोस्तों की
महफ़िल,
और
नाच-गाने वाली तवायफ़ें थीं।
उसके
आस-पास के दोस्त
भी
सिर्फ़
मौज-मस्ती के लिए
थे,
असली
दोस्ती
या
वफ़ादारी उनमें
नहीं
थी।
एक
दिन
जसवंत
का
दोस्त
संसार,
एक
नौजवान
फ़ोटोग्राफ़र अमल से
उसका
परिचय
करवाता
है।
अमल
को
देखते
ही
जसवंत
उसे
नौकरी
पर
रख
लेता
है—वो भी मोटी
तनख्वाह और
रहने
के
अच्छे
इंतज़ाम के
साथ।
अब
अमल
हर
जगह
जसवंत
के
साथ
रहता
है—चाहे वो तवायफ़ों के
पास
जाने
का
सिलसिला हो,
या
शराब
की
महफ़िलें। अमल
इन
जगहों
पर
जसवंत
की
तस्वीरें भी
खींचता
है।
कुछ
समय
बाद
जसवंत
की
मुलाक़ात एक
सुसंस्कृत और
योग्य
लड़की
से
होती
है
और
दोनों
की
शादी
हो
जाती
है।
शादी
के
कुछ
सालों
बाद,
उनके
घर
बेटे
नरेश का
जन्म
होता
है।
यहीं
से
कहानी
में
एक
दिलचस्प मोड़
आता
है।
जसवंत
को
महसूस
होता
है
कि
अमल,
नरेश
में
गहरी
दिलचस्पी लेने
लगा
है।
अमल,
नरेश
को
कई
बार
डांटता
है,
ताकि
वो
अपने
पिता
की
ऐय्याशी की
राह
पर
न
चले।
जसवंत
को
ये
बात
खटकती
है
और
वो
अमल
को
चेतावनी देता
है।
लेकिन
मामला
तब
बिगड़ता है
जब
जसवंत
को
पता
चलता
है
कि
अमल
ने
नरेश
को
थप्पड़
मार
दिया
है।
ग़ुस्से में
जसवंत,
अमल
को
नौकरी
से
निकाल
देता
है।
कहानी
यहाँ
से
17 साल
आगे
बढ़ती
है।
अब
भारत
आज़ाद
हो
चुका
है,
जसवंत
की
पत्नी
का
देहांत
हो
चुका
है,
और
नरेश
की
शादी
की
तैयारियाँ हो
रही
हैं।
वहीं,
अमल—जो आज़ादी की
लड़ाई
में
शामिल
था—अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के
साथ
जेल
से
रिहा
होता
है।
इसी
बीच,
जसवंत
को
अपनी
दिवंगत
पत्नी
का
एक
पुराना
लॉकेट
मिलता
है।
वो
उम्मीद
करता
है
कि
लॉकेट
के
अंदर
उसकी
तस्वीर
होगी,
लेकिन
जब
वो
उसे
खोलता
है,
तो
हैरान
रह
जाता
है—अंदर उसकी नहीं,
बल्कि
अमल
की
तस्वीर
होती
है।
यहीं
से
जसवंत
की
दुनिया
हिल
जाती
है।
उसके
दिल
में
शक
और
ग़ुस्सा उमड़ने
लगता
है।
वो
यह
सोचकर
तिलमिला उठता
है
कि
शायद
उसकी
पत्नी
और
अमल
के
बीच
कोई
रिश्ता
था।
ग़ुस्से और
अपमान
से
भरे
जसवंत
का
मानसिक
संतुलन
बिगड़ने लगता
है।
आख़िरकार, जसवंत,
अमल
की
हत्या
कर
देता
है।
लेकिन
ऐसा
करने
के
बाद
उसे
महसूस
होता
है
कि
उसके
पास
जीने
की
कोई
वजह
नहीं
बची।
अंत
में,
जसवंत
खुदकुशी कर
लेता
है,
और
कहानी
एक
दर्दनाक अंत
पर
पहुँचती है।
- Ayaash
सिर्फ़ एक अमीर ज़मींदार की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे इंसान की दास्तान है जो अपनी इच्छाओं और अहंकार में अंधा हो जाता है।
- फ़िल्म में 1930
के दौर का माहौल बख़ूबी दिखाया गया है—जहाँ एक ओर देश में आज़ादी की लड़ाई थी, वहीं कुछ लोग सिर्फ़ ऐशो-आराम में डूबे हुए थे।
- संजीव कुमार का अभिनय फिल्म की जान है। उनके किरदार के अंदर के बदलाव—मौज-मस्ती से शक और हिंसा तक—बेहतरीन तरीके से दिखाए गए हैं।
- रविन्द्र
जैन का संगीत और आनंद बक्शी के गीत कहानी के भाव को और गहरा कर देते हैं।
कुल
मिलाकर,
Ayaash एक
इमोशनल
ड्रामा
है,
जिसमें
प्यार,
दोस्ती,
शक,
और
विश्वासघात के
साथ-साथ इंसानी कमज़ोरियों को
बारीकी
से
पेश
किया
गया
है।
इसका
अंत
आपको
सोचने
पर
मजबूर
कर
देता
है
कि
इंसान
के
ग़लत
फ़ैसलों का
अंजाम
कितना
विनाशकारी हो
सकता
है।
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