दोस्तों, आज हम बात करने वाले हैं 1986 की सुपरहिट और ब्लॉकबस्टर फिल्म "कर्मा" की। यह फिल्म एक्शन, ड्रामा और देशभक्ति से भरपूर है। इसका निर्देशन किया था मशहूर निर्देशक सुभाष घई ने, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं। फिल्म में बेहतरीन कलाकारों की लंबी फेहरिस्त शामिल है – दिलिप कुमार, नूतन, जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर, नसीरुद्दीन शाह, श्रीदेवी, पूनम ढिल्लों, अनुपम खेर और कई अन्य सितारे।
इस फिल्म की खासियत यह थी कि इसमें पहली बार ट्रेजडी किंग दिलिप कुमार और दिग्गज अभिनेत्री नूतन की जोड़ी बनाई गई। साथ ही, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 1986 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी और पूरे दशक की ग्यारहवीं सबसे बड़ी हिट साबित हुई।
फिल्म की कहानी शुरू होती है राणा विश्व प्रताप सिंह (दिलिप कुमार) से, जो एक ईमानदार और कड़क स्वभाव के पूर्व पुलिस अधिकारी हैं। अब वे एक जेल के इंचार्ज हैं, जहां अपराधियों को सुधारा जाता है।
इसी दौरान उन्हें खबर मिलती है कि एक खतरनाक आतंकवादी संगठन ब्लैक स्टार का सरगना डॉ. माइकल डेंग (अनुपम खेर) पकड़ा गया है और उसे उनकी जेल में रखा जाएगा। डेंग बेहद चालाक और निर्दयी इंसान है। जेल में एक बहस के दौरान वह एक वार्डन पर हमला कर देता है। इस पर गुस्से में आकर विश्व उसे थप्पड़ मारते हैं। डेंग यह अपमान सहन नहीं कर पाता और कसम खाता है कि वह इसका बदला जरूर लेगा।
विश्व जब एक दिन बाहर होते हैं, तभी ब्लैक स्टार के आतंकवादी जेल पर हमला कर देते हैं। वे डॉ. डेंग को छुड़ाकर ले जाते हैं और पूरी जेल उड़ा देते हैं। इस हमले में विश्व का परिवार भी बर्बाद हो जाता है। उनकी पत्नी रुक्मणी (नूतन) और छोटा बेटा तो बच जाते हैं, लेकिन बाकी परिवार मारा जाता है। सदमे से रुक्मणी अपनी आवाज खो बैठती हैं।
इस दर्दनाक घटना के बाद विश्व फैसला करते हैं कि वे डेंग और उसके आतंकवादी संगठन को खत्म करके रहेंगे।
भारतीय सरकार से अनुमति लेकर विश्व तीन अपराधियों को अपने मिशन के लिए चुनते हैं –
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बैजू ठाकुर (जैकी श्रॉफ)
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जॉनी उर्फ ज्ञानेश्वर (अनिल कपूर)
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और एक सुधरा हुआ पूर्व आतंकवादी खैरुद्दीन "खैरू" (नसीरुद्दीन शाह)।
विश्व खुद को फॉरेस्ट रेंजर बताकर भारत की सीमा के पास डेरा डालते हैं, जहां डेंग का ठिकाना होने की संभावना है।
धीरे-धीरे ये चारों एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। बैजू और जॉनी को गांव की दो लड़कियों राधा (श्रीदेवी) और तुलसी (पूनम ढिल्लों) से प्यार हो जाता है। खैरू यह देखकर विश्व से कहता है कि बैजू और जॉनी सुधर चुके हैं और इन्हें इस खतरनाक मिशन से मुक्त कर देना चाहिए। लेकिन विश्व का मानना है कि उनका असली मकसद सिर्फ डेंग को पकड़ना है।
एक दिन आतंकवादी हमला करते हैं। विश्व अपने साथियों को बचाने के लिए खुद गोली खा लेते हैं और गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है।
अब बैजू, जॉनी और खैरू समझ जाते हैं कि यह मिशन सिर्फ विश्व का नहीं बल्कि उनका भी है। वे ठान लेते हैं कि हर हाल में डॉ. डेंग को खत्म करेंगे।
तीनों को पता चलता है कि डेंग का मुख्य अड्डा कहां है। वे वहां पहुंचते हैं और आतंकवादियों से भिड़ जाते हैं। वहां भारतीय सेना के कुछ कैदी भी बंदी बनाए गए होते हैं। उनकी मदद से यह टीम आतंकवादियों के बड़े हथियारों के केंद्र को उड़ाने का प्लान बनाती है।
खैरू एक साहसी योजना पेश करता है – वह विस्फोटकों से भरा ट्रक सीधे आतंकवादियों के ठिकाने में घुसाकर उसे उड़ाना चाहता है। बैजू और जॉनी उसे रोकते हैं, लेकिन खैरू अपनी जान देश के लिए कुर्बान कर देता है।
खैरू की कुर्बानी से आतंकवादी संगठन की कमर टूट जाती है। बैजू और जॉनी बाकी आतंकवादियों को मार गिराते हैं। इसी दौरान अस्पताल से ठीक होकर विश्व भी वापस आते हैं और डॉ. डेंग को मारकर अपना मिशन पूरा करते हैं।
इस जीत के बाद रुक्मणी को भी अपनी आवाज वापस मिल जाती है।
फिल्म का अंत बेहद भावुक है। बैजू और जॉनी को वीरता पुरस्कार मिलता है, जबकि खैरू को मरणोपरांत सम्मान दिया जाता है। आखिरकार बैजू-राधा और जॉनी-तुलसी की शादियां हो जाती हैं।
फिल्म की खूबियां-
1. शानदार अभिनय – दिलीप कुमार ने विश्व प्रताप सिंह के किरदार में गजब की गहराई दिखाई है। अनुपम खेर ने डॉ. डेंग को खलनायक के रूप में अमर बना दिया।
2. देशभक्ति और त्याग – फिल्म यह संदेश देती है कि देश से बढ़कर कुछ नहीं है।
3. संगीत – लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत आज भी याद किया जाता है।
4. निर्देशन – सुभाष घई ने फिल्म को भव्यता और भावनाओं से भरपूर तरीके से पेश किया।
"कर्मा" सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन की तरह थी जिसने 80 के दशक में लोगों के दिलों में देशभक्ति की आग जलाई। इसमें एक्शन, इमोशन, रोमांस और बलिदान सबकुछ है। यही कारण है कि यह फिल्म आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक क्लासिक मानी जाती है।
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